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?वीर निर्वाण भूमि पावापुरी पहुँचना - अमृत माँ जिनवाणी से - १७५


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

      आज आपको पूज्य शान्तिसागरजी महराज के उस समय के प्रसंग का वर्णन करते हैं जब पूज्य शान्तिसागरजी महराज तीर्थराज शिखरजी की वंदना की श्रृंखला में वीर निर्वाण भूमि पावापुरीजी पहुँचे थे।

   लेखक के निर्वाण भूमि के वर्णन के पठन के उपरांत आप भी इस प्रकार अनुभव करेंगे कि आपने भी अभी-२ पावापुरीजी की वंदना की हो।

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १७५    ?


      "वीर निर्वाण भूमि पावापुरी पहुँचना"


          राजगिरी की वंदना के पश्चात् संघ ने महावीर भगवान के निर्वाण से पुनीत पावापुरी की ओर प्रस्थान किया। जब पावापुरी का पुण्य स्थल समीप आया, तब वहाँ की प्राकृतिक शोभा मन को अपनी ओर आकर्षित करने लगती है।

        जल मंदिर के भीतर भगवान महावीर प्रभु के चरण चिन्ह विराजमान हैं। तालाब लगभग आधा मील लम्बा तथा उतना ही चौड़ा होगा। उस सरोवर में सदा मनोहर सौरभ संपन्न कमल शोभायमान होते हैं। मध्य का मंदिर श्वेत संगमरमर का बड़ा मनोज्ञ मालूम होता है।

       पूर्णिमा की चाँदनी में उसकी शोभा और भी प्रिय लगती है। सरोवर के कारण मंदिर का सौन्दर्य बड़ा आकर्षक है। भगवान का अंतरंग जितना सुन्दर था, उनका शरीर जितना सौष्ठव संपन्न था, उतना ही बाह्य वातावरण भी भव्य प्रतीत होता है।

    सरोवर में बड़ी-२ मछलियाँ स्वछन्द क्रीड़ा करती हैं, उन्हें भय का लेश भी नहीं है, कारण वहाँ प्राणी मात्र को अभय प्रदान करने वाली वीर प्रभु की अहिंसा की शुभ चन्द्रिका छिटक रही है। मंदिर के पास पहुँचने के लिए सुन्दर पुल बना है। विदेशी भी पावापुरी के जल मंदिर के सौंदर्य की स्थायी स्मृति फ़ोटो के रूप में साथ ले जाया करते हैं।

      ?निर्वाण काल तथा आसन?

       पावापुरी की वंदना से बढ़कर सुखद और कौन निर्वाण स्थल होगा? यहाँ पहाड़ी की चढ़ाई का नाम निशान नहीं है, लंबा जाना नहीं है। शीतल समीर संयुक्त जलमंदिर जाने के बाद मध्य में वहाँ से निर्वाण पद प्राप्त करने वाले प्रभु वर्धमान जिनेन्द्र के चरण चिन्ह विद्यमान हैं, जो निर्वाण स्थल के स्मारक हैं।

         आचार्य यतिवृषभ ने लिखा है कि वीर भगवान ने कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी के प्रभात काल में स्वाति नक्षत्र रहते हुए पावापुरी से अकेले ही सिद्धपद प्राप्त किया था, उनके साथ में और कोई मुनि मोक्ष नहीं गए।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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