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?ग्राम के वृद्धो से महराज की जीवन सामग्री - १७०


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १७०    ?


"ग्राम के वृद्धों से महराज की जीवन सामग्री"


            भोज के वृद्धजनों से तर्क-वितर्क द्वारा जो सामग्री मिली उससे पता चला, सत्पुरुषों की जननी और जनक जिस प्रकार अपूर्व गुण संपन्न होते हैं, वही विशेषता सातगौड़ा को जन्म देने वाली माता सत्यवती और भव्य शिरोमणी श्री भीमगौड़ा पाटिल के जीवन में थी।

        उनका गृह सदा बड़े-२ महात्माओं, सत्पुरुषों और उज्जवल त्यागियों की चरण रज से पवित्र हुआ करता था। जब भी कोई निर्ग्रन्थ दिगंबर मुनिराज या अन्य महात्मा भोज ग्राम में आते तो अतिथि-संविभाग कार्य में अत्यंत प्रवीण पुण्यशाली माता सत्यवती के भवन को अवश्य पवित्र करते थे।

        वहाँ श्रद्धा, भक्ति, विवेक, विनय आदि सब प्रकार के आंतरिक साधन तथा वैभवशाली होने के कारण बाह्य सामग्री सदा संतों के लिए उपस्थित रहती थी।

        बड़े-बड़े मुनिराज तथा तपस्वी लोग भोजग्राम के भूपतितुल्य श्री भीमगौड़ा पाटील के यहाँ पधारते थे, जहाँ बालक सतगौड़ा उनकी सेवा में तत्पर रहे, उनके जीवन से धर्म के विकसित तथा परिपक्व स्वरुप को देखा करता था तथा उनके जीवन से उज्जवल जीवन बनाने की श्रेष्ठ कला सीखा करता था।

         यही बड़ी शिक्षा भाग्यशाली भव्य बालक को दिगंबर श्रवणों के निकट संपर्क से मिलती रही, जिसके कारण कुमार काल में ही भोगों की दासता को छोड़ तपस्वी, मुनि बनने की प्रबल लालसा मन में उत्पन्न हो गई थी।

        विदुषी धर्मवती माता से तीर्थंकरों का चरित्र, मोक्षगामी पुरुषों की बातें तथा रत्नत्रय को पुष्ट करने वाली शिक्षा प्राप्त हुआ करती थी। वातावरण भी अलौकिक धार्मिक मनोवृत्ति को विकासप्रद सामग्री प्रदान करता था। 

      परिवार का उज्जवल वातावरण जीवन पर कैसा प्रभाव डालता है, वह बात भोज भूमि में हमारे स्वयं दृष्टीगोचर हुई।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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