?रुद्रप्पा की समाधि - अमृत माँ जिनवाणी से - १६१
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६१ ?
"रुद्रप्पा की समाधि"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के बड़े भाई, वर्तमान के मुनि श्री १०८ वर्धमान सागरजी महराज ने शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ अवस्था के मित्र लिंगायत धर्मावलंबी श्रीमंत रुद्रप्पा की बात सुनाई।
सत्यव्रती रुद्रप्पा वेदांत का बड़ा पंडित था। वह अत्यंत निष्कलंक व्यक्ति था। वह अपने घर में किसी से बात न कर दिन भर मौन बैठता था। कभी-कभी हमारे घर आकर आचार्य महराज से तत्वचर्चा करता और उनका उपदेश सुनता था।
एक समय की बात है कि भोजग्राम में प्लेग हो गया। हम सब अपने माता पिता के साथ अपने मामा के यहाँ यरनाल ग्राम में पहुँचे। प्लेग भीषण रूप धारण कर रहा था। सुनने में आया रुद्रप्पा को प्लेग हो गया। प्लेग की गाँठ उठ आई। उस समय लोग प्लेग से इतना घबराते थे कि बिरला व्यक्ति कुटुम्बी होते हुए बीमार के पास जाता था। जैसे कोई व्याघ्र से दूर भागता है, ऐसे बीमार से दूर रहा करते थे।
आचार्य महराज (गृहस्थ जीवन में) ने रुद्रप्पा की बीमारी का समाचार सुना। वे चुपके से रुद्रप्पा के पास चले गए। भय क्या चीज है, इसे वे जानते ही नहीं थे। उनका जीवन आदि से अंत तक निर्भय भावों से भरा है।
मित्र रुद्रप्पा के पास पहुँचकर उन्होंने देखा कि उसकी अवस्था अत्यंत शोचनीय है। उन्होंने सोचा कि ऐसे जीव का कल्याण करना हमारा कर्तव्य है।
आचार्य महराज ने कहा- "रुद्रप्पा, अब तुम्हारा समय समीप है। अब समाधिमरण करो। शरीर से आत्मा जुदी है। शरीर का ध्यान छोड़ो। रुद्रप्पा 'अरिहंता' बोलो।" अब रुद्रप्पा के मुख से 'अरिहंता' निकलने लगा।
रुद्रप्पा की सल्लेखना का आगे का वृत्तांत अगले प्रसंग में....
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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