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?वीतराग प्रवृत्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - १८१


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

         प्रस्तुत प्रसंग में पूज्यश्री का गृहस्थ जीवन से ही अद्भुत वैराग्य दृष्टिगोचर होगा। वर्तमान में हम सभी को नजदीक में मुनियों का पावन सानिध्य भी संभव हो जाता है लेकिन सातदौड़ा का साधुओं की अत्यंत अल्पता के साथ यह वैराग्य भाव उनकी महान भवितव्यता का स्पष्ट परीचायक हैं।

?    अमृत माँ जिनवाणी से - १८१    ?


                 "वीतराग-प्रवृत्ति"


             पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज प्रारम्भ से ही वीतराग प्रवृत्ति वाले थे। घर में बहन की शादी में या कुमगौड़ा की शादी में शामिल नहीं हुए थे।


       उनकी स्मरण शक्ति सबको चकित करती थी। कभी उन्हें प्रमाद या भूल के कारण शिक्षकों ने दण्ड नहीं दिया। अध्यापक इनके क्षयोपशम की सदा प्रशंसा करते थे।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?


जिनमंदिर जाकर देवदर्शन करने से जीवन में शांति व ह्रदय में आनंद का संचार होता है अतः हम सभी को प्रतिदिन देवदर्शन करने का प्रयास करना चाहिए।

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