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?मधुर तथा संयत जीवन - अमृत माँ जिनवाणी से - १८२


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १८२    ?


            "मधुर तथा संयत जीवन"


           बाल्य अवस्था में सातगौड़ा का गरीब-अमीर सभी बालकों पर समान प्रेम रहता था। साथ के बालकों के साथ कभी भी लड़ाई झगड़ा नहीं होता था। उन्होंने कभी भी किसी से झगड़ा नहीं किया। उनके मुख से कभी कठोर वचन नहीं निकले। बाल्य-काल से ही वे शांति के सागर थे, मितभाषी थे।

          उनकी खान-पान में बालकों के समान स्वछन्द वृत्ति नहीं थी। जो मिलता उसे वे शांत भाव से खा लिया करते थे। बाल्यकाल में बहुत घी दूध खाते थे। पाव, ढ़ेड़ पाव घी वे हजम कर लेते थे। आज की महान तपस्चर्या में वही संचित बल काम करता है।

         सब लोग उनको अप्पा (दादा) कहते थे। वे सादे वस्त्र पहनते थे। खादी का बना १२ बंदी वाला अंगरखा पहनते थे। माता सत्यवती सूत कातती थी। इससे यह खादी बनती थी। वे सदा फैटा बांधते थे। वे तकिये से टिककर नहीं बैठते थे। तकिए से दूर आश्रय विहीन बैठते थे।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

चारित्र चक्रवर्ती पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन चरित्र के प्रसंगों को जानकर आपके जीवन में कुछ परिवर्तन आया हो या आपने चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ को पढ़ना प्रारंभ कर दिया हो अथवा कोई अन्य रोचक बात हो तो आप अपनी अनुभूति 9321148908 व्हाट्सउप नंबर पर शेयर करें, ताकि प्रतिदिन चल रही श्रृंखला के परिणामो का अध्यन किया जा सके।

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