?सबके उपकारी - अमृत माँ जिनवाणी से - १८५
? अमृत माँ जिनवाणी से - १८५ ?
"सबके उपकारी"
सातगौड़ा अकारण बंधु तथा सबके उपकारी थे। उनको धर्म तथा नीति के मार्ग में लगाते थे। वे भोज भूमि के पिता तुल्य प्रतीत होते थे।
उनके साधु बनने पर ऐसा लगा कि नगर के पिता अब हमेशा के लिए नगर को छोड़कर चले गए। उस समय उनकी चर्चा होते ही आँसू आ जाते हैं कि उस जैसी विश्वपूज्य विभूति के ग्राम में हम लोगों का जन्म हुआ है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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