आत्म प्रसंशा के प्रति उनकी धारणा - अमृत माँ जिनवाणी से - ३२
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३२ ?
"आत्म प्रशंसा के प्रति उनकी धारणा"
शरीर के प्रति अनात्मीय भाव होने से महाराज कहने लगे- "यह मकान दूसरों का है। जब मकान गिरने लगेगा तो दूसरे मकान मे रहेंगे।"
जो लोग महाराज की स्तुति करते हैं, "प्रशंसा करते हैं। वे उनके इन वक्यों को बाँचें- "मिट्टी की क्या प्रशंसा करते हो ? हमारी कीमत क्या है ?"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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