शेर - अमृत माँ जिनवाणी से - २५
? अमृत माँ जिनवाणी से - २५ ?
"शेर"
"कोन्नूर की गुफा में एक बार आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ध्यान कर रहे थे, तब शेर आ गया था।"
मैंने पूंछा, "महाराज शेर के आने से भय का संचार तो हुआ होगा?"
महाराज ने कहा, "नहीं कुछ देर बाद शेर वहाँ से चला गया ।"
मैंने पूंछा, "महाराज निर्ग्रन्थ दीक्षा लेने के बाद कभी शेर आपके पास आया था?"
महाराज ने कहा, "हम मुक्तागिरी के पर्वत पर रहते थे, वहाँ शेर आया करता था। श्रवणबेलगोला की यात्रा में भी शेर मिला था। सोनागिरी क्षेत्र पर भी वह आया था। इस तरह शेर आदि बहुत जगह आते रहे, "किन्तु इसमे महत्त्व की कौन सी बात है?"
मैंने कहा, "महाराज ! साक्षात् यमराज की मूर्ति व्याघ्रराज के आने पर घबराहट होना साधारण सी बात है।"
महाराज ने कहा, "डर किस बात का किया जाय? जीवन भर हमे कभी किसी वस्तु का डर नहीं लगा। जब तक कोई पूर्व भव का बैर ना हो अथवा उस जानवर को बाधा ना दो, तब तक वह नहीं सताता है।"
महाराज ने बड़वानी जाते हुए सतपुड़ा के एक निर्जन वन की घटना बताई कि, "विहार करते समय उस निर्जन वन मे संध्या हो गयी। हम ध्यान करने को बैठ गए। साथ के श्रावक वहाँ डेरा लगाकर ठहर गए। उस समय जब शेर आया श्रावक घबरा गए। एक शेर तो हमारी कुटी के भीतर घुस गया था। "कुछ काल के पश्चात् वह बिना हानि पहुचाये जंगल में चला गया था।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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