?वृद्धा को पीठ पर लाद शिखरजी की वंदना - अमृत माँ जिनवाणी से - २६
? अमृत माँ जिनवाणी से -२६ ?
"वृद्धा को पीठ पर लाद शिखरजी वंदना"
गृहस्थ अवस्था में आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज जब शिखरजी गए उस समय का प्रसंग है।
आचार्यश्री(गृहस्थ जीवन में) पर्वत पर चढ़ रहे थे। उनकी करुणा दृष्टि एक वृद्ध माता पर पडी, जो प्रयत्न करने पर भी आगे बढ़ने में असमर्थ हो गयी थी। थोडा चलती थी, किन्तु फिर ठहर जाती थी। पैसा इतना ना था कि पहले से ही डोली का प्रबंध करती।
उस माता को देखकर इन महामना के ह्रदय में वात्सल्य भाव उत्पन्न हुआ।
इन्होंने माता को आश्वासन देते हुए धैर्य बंधाया और अपनी पीठ पर उनको बैठकर पर्वतराज की कठिन वंदना कर दी।
हमे तो लगता है कि उस पर्वतराज पर उस माता का भार ही इन्होंने नहीं उठाया, किन्तु आगामी मानवता का पवित्र भार उठाने की शक्ति की परीक्षा भी की थी।
आज प्रतिष्ठा का रोगी निर्धन भी थोड़े से भार को उठाने में असमर्थ बन नौकर या वाहन खोजता है, किन्तु ये श्रीमंत भीमगोड़ा पाटिल के अनन्य स्नेह के पात्र आत्मज अपनी प्रतिष्ठा, एक जिन चरण भक्त निर्धन माता को पीठ पर लादकर पर्वत की वंदना करना मानते थे।
ऐंसी ही घटना आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के अंतःकरण की पवित्रता व् महानता का अनुमान होता है।
? स्वाध्याय चरित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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