पंच परमेष्ठी स्मरण - अमृत माँ जिनवाणी से - २८
? अमृत माँ जिनवाणी से -२८ ?
"पंच परमेष्ठी स्मरण"
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज से प्रश्न किया कि "उपवासों में आपको अनुकूलता होती है या नहीं?"
महाराज ने कहा "हम उतने उपवास करते हैं, जितने में मन की शांति बनी रहे, जिसमें मन की शांति भंग हो, वह काम नहीं करना चाहिए।"
पुनः प्रश्न "महाराज ! एक ने पहले उपवास का लंबा नियम ले लिया। उस समय उसे ज्ञान ना था, कि यह उपवास मेरे लिए दुखद हो जायेगा। अब वह कष्टपूर्ण स्थिति में क्या करें?"
महाराज ने कहाँ "व्रतादि के पालन में जब कष्ट आवे, पंच परमेष्ठी का लगातार नाम स्मरण करें। हम दृढ़ता से कहते हैं कि पंच परमेष्ठी के प्रसाद से शरीर की पीढ़ा शीघ्र ही दूर हो जायेगी और शांति मिलेगी।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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