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सर्पराज का शरीर पर लिपटना - अमृत माँ जिनवाणी से - १७


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १७    ?


        "सर्पराज का शरीर पर लिपटना"


        आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की तपस्चर्या अद्भुत थी। कोगनोली में लगभग आठ फुट लंबा स्थूलकाय सर्पराज उनके शरीर से दो घंटे पर्यन्त लिपटा रहा । वह सर्प भीषण होने के साथ ही वजनदार भी था । महाराज का शरीर अधिक बलशाली था, इससे वे उसके भारी भोज का धारण कर सके। 

            दो घंटे बाद में उनके पास पहुँचा । उस समय वे अत्यंत प्रसन्न मुद्रा में थे । किसी प्रकार की खेद, चिंता या मलिनता उनके मुख मंडल पर नहीं थी। उनकी स्थिरता सबको चकित करती थी।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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