असाधारण शक्ति - अमृत माँ जिनवाणी से - १६
? अमृत माँ जिनवाणी से - १६ ?
"असाधारण शक्ति"
आचार्य शान्तिसागरजी महाराज का शरीर बाल्य-काल मे असाधारण शक्ति सम्पन्न रहा है। चावल के लगभग चार मन के बोरों को सहज ही वे उठा लेते थे। उनके समान कुश्ती खेलने वाला कोई नही था। उनका शरीर पत्थर की तरह कड़ा था।
वे बैल को अलग कर स्वयं उसके स्थान में लगकर, अपने हांथो से कुँए से मोट द्वारा पानी खेच लेते थे। वे दोनो पैर को जोड़कर १२ हाथ लंबी जगह को लांघ जाते थे। उनके अपार बल के कारण जनता उन्हें बहुत चाहती थी।
वे बच्चों के साथ बाल क्रीड़ा नही करते थे। व्यर्थ की बात नही करते थे। किसी बात के पूंछने पर संक्षेप में उत्तर देते थे। वे लड़ाई झगड़े में नही पड़ते थे। बच्चों के समान गंदे खेलो में उनका तनिक भी अनुराग नही था।
वे लौकिक आमोद-प्रमोद से दूर रहते थे। धार्मिक उत्सवो में जाते थे।
? स्वाध्याय चरित्रचक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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