अद्भुत आत्मबल - अमृत माँ जिनवाणी से - २९
? अमृत माँ जिनवाणी से - २९ ?
"अद्भुत आत्मबल"
कवलाना में चातुर्मास की घटना है। महाराज ने अन्न छोड़ रखा था। फलो का रस आदि हरी वस्तुओ को छोड़े लगभग १८ वर्ष हो गए थे। घी,नमक,शक्कर,छाछ आदि पदार्थो को त्यागे हुए भी बहुत समय हो गया था।
उस चातुर्मास में धारणा-पारणा का क्रम चल रहा था। गले का रोग अलग त्रास दायक हो रहा था।
एक उपवास के बाद दूसरे पारणे के दिन अंतराय आ गया। तीसरा दिन उपवास का था। चौथे दिन फिर अंतराय आ गया, पाँचवा दिन फिर उपवास का था। छठ्ठे दिन आहार ले पाये थे।
ऐंसे अंतराय की भीषण परम्परा दो-तीन अवसर पर आई, जिससे शारीर बहुत क्षीण हो गया। डग भर चलना भी कठिन हो गया था। इतने में खूब वर्षा हो गयी। शीत का वेग भी बड़ गया। शरीर तो दिगम्बर था ही। दो-तीन बजे रात को जोर की खाँसी आई और उस समय उनकी भीषण स्थिति हो गई।
सूर्योदय होने पर जब महाराज के दर्शन को पहुँचे, तब महाराज ने कहा- आज रात को हमारा काम समाप्त हुआ सा प्रतीत होता था।
सुनते ही चित्त घबरा गया। मैंने पूंछा महाराज क्या हुआ ?
महाराज ने बताया- जोर की खाँसी आई और उसमे श्वास बाहर निकली, वह कुछ मिंटो तक वापिस नहीं खीची जा सकी । नाडी भी जाती रही और शारीर भी शून्य सा पड़ गया, फिर कुछ समय के उपरांत सब बातें धीरे-धीरे सुधरी थी।
उस समय महाराज के मुख से कठिनता से शब्द निकलते थे, किन्तु दीनता या घबराहट या कराहना आदि का लेश मात्र भी नहीं था। आत्मा में अद्भुत बल उस समय दिखता था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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