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महराज के परिवार में उच्च संस्कार - अमृत माँ जिनवाणी - १९


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १९    ?

    "महाराज के परिवार मे उच्च संस्कार"

       वर्ष १९५२ मे चरित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के लेखक आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के ग्राम मे उनके गृहस्त जीवन के बारे मे जानकारी प्राप्त करने हेतु गए।

      ११ सितम्बर को अष्टमी के  दिन उनको उस पवित्र घर मे भोजन मिला, जहाँ आचार्य महाराज रहा करते थे।

      उस दिन पंडितजी के लिए लवण आदि षटरस विहीन भोजन बना था।वह भोजन करने बैठे।पास मे महाराज के भाई का नाती भोजन कर रहा था।

      बालक भीम की थाली मे बिना नमक का भोजन आया, इसलिए उसने अपनी माता से कहा कि माता मुझे नमक चाहिए।

      पास में बैठी लगभग १० वर्ष की वय वाली बालिका बहन सुशीला बोल उठी कि भैया, जब तुम स्वामी (मुनि) बनोगे, तब तो बिना नमक का आहार लेना होगा, उस समय नमक कैसे मांगोगे?

      उस समय भाई-बहन की स्वाभाविक बातचीत सुनकर मेरी समझ में आया कि परिवार की पवित्रता का पुत्रादि के जीवन पर कैसा प्रभाव पड़ा करता है।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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