पंचमकाल में मुनियों की अल्प तपस्या द्वारा महान निर्जरा - अमृत माँ जिनवाणी से - २०
? अमृत माँ जिनवाणी से - २० ?
पंचमकाल में मुनियो की अल्प तपस्या्
द्वारा महान निर्जरा
जो व्यक्ति यह सोचता हो कि आज चतुर्थ कालीन मुनियो के समान कठोर तपस्वी जीवन व्यतीत करना अशक्य होने के कारण कर्मो की निर्जरा कम होती होगी, उसे आचार्य देवसेन के ये शब्द बड़े ध्यान पढ़ना चाहिए-
"पहले हजार वर्ष तप करने पर जितने कर्मो का नाश होता था आज हीन सहनन में एक वर्ष के तप द्वारा कर्मो का नाश होता है।"
इसका कारण यह है कि हीन सहनन में तपस्या करने के लिए अलौकिक मनोबल लगता है। आज शारीरिक स्थिति अदभुत है। यदि एक दिन आहार नहीं मिला तो लोगो का मुख कमल मुरझा जाता है। वज्रवृषभसंहनन धारी सहज ही अनेक उपवास और बड़े-२ कष्ट सहन करने में होते थे। आज का अल्प संयत पुरातन कालीन बड़े संयम के समान आत्म दृढ़ता चाहता है।
जैसे एक करोड़पति किसी कार्य के लिए एक लाख रुपये दान करता है और दूसरा हजार पति नौ सौ रुपये उसी कार्य हेतु देता है, उन दोनो दानियो में अल्प द्रव्य देने वाला दानी असाधारण महत्व धारण करता है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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