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शुभ दोहला - अमृत माँ जिनवाणी से - १८


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १८    ?


                  "शुभ दोहला"

       चरित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के लेखक जब आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के बचपन की स्मृतियों के बारे में जानने हेतु उनके गृहस्थ जीवन के बड़े भाई मुनि श्री वर्धमान सागर जी महाराज के पास गए।

    उन्होंने पूंछा, "स्वामिन् संसार का उद्धार करने वाले महापुरुष जब माता पिता के गर्भ में आते हैं, तब शुभ- शगुन कुटुम्बियों आदि को देखते हैं। माता को भी मंगल स्वप्न आदि का दर्शन होता है। 

        आचार्य महाराज सदृश रत्नत्रय धारको की चूड़ामणि रूप महान विभूति का जन्म कोई साधारण घटना नहीं है। कुछ ना कुछ अपूर्व बात अवश्य हुई होगी?" 

       महापुराण में कहा है कि जब भरतेश्वर माता यशस्वती के गर्भ में आए थे, तब उस माता की इच्छा तलवार रूप दर्पण में मुख की शोभा देखते की होती थी।

    वर्धमान सागर जी ने कुछ काल तक चुप रहकर पश्चात बताया, "उनके गर्भ में आने पर माता को दोहला हुआ था कि एक सहस्त्र दल वाले एक सौ आठ कमलो से जिनेन्द्र भगवान की पूजन करूँ।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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