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लोकोत्तर व्यक्तित्व - अमृत माँ जिनवाणी से - २१


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - २१    ?


              "लोकोत्तर व्यक्तित्व"

       
         अक्टूबर सन १९५१ में बारामती के उद्यान में लेखक ने उनके छोटे भाई के साथ बड़ी विनय के साथ, आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज से उनकी कुछ जीवन गाथा जानने की प्रार्थना की, तब उत्तर मिला कि हम संसार के साधुओ में सबसे छोटे हैं, हमारा लास्ट नंबर है, उससे तुम क्या लाभ ले सकोगे? हमारे जीवन में कुछ भी महत्व की बात नहीं है।

    लेखक ने कहा महाराज आपका साधुओ में प्रथम स्थान है या अंतिम, यह बात देखने वाले ही जान सकते हैं।संसार जानता है कि आपका फर्स्ट नंबर है।

       लोग हमको क्या जानें ? हम अपने को जानते हैं कि तीन कम नव कोटि मुनियो में हमारा अंतिम नंबर है।

     लेखक ने कहा अच्छा ! आपकी दृष्टि में वे सब सधुगण हैं, तब आपके जीवन की बातें हम सबके लिए बड़ी कल्याणप्रद तथा बोधजनक होंगी।

       बड़े-२ ऋद्धिधारी मुनियो तथा महापुरुषो के जीवन चरित्र का पता नहीं है, तब हमारे चरित्र का क्या होगा ? तुम हमे सबसे छोटा समझो। इतना हमने कह दिया अधिक नहीं कहना है।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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