75. जं णिय-बोहहँ बाहिरउ णाणु वि कज्जु ण तेण।
दुक्खहँ कारणु जेण तउ जीवहँ होइ खणेण।।
अर्थ - जो स्व-बोध से बाहर का ज्ञान हैै उस (बाहरी ज्ञान) से भी प्रयोजन नहीं है, क्योंकि (स्वबोध के अभाव से) (बाहरी) तप जीवों के लिए शीध्र दुःखों का कारण होता है।
शब्दार्थ - जं - जो, णिय-बोहहँ-स्व-बोण का, बाहिरउ-बाहर का, णाणु -ज्ञान, वि -भी, कज्जु-प्रयोजन, ण-नहीं, तेण-उससे, दुक्खहँ -दुःखों का, कारणु-कारण, जेण -कयोंकि, तउ-तप, जीवहँ -जीवों के लिए, होइ -होता है, खणेण-शीघ्र।
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