विशुद्ध भाव के बिना मुक्ति संभव नहीं है
आचार्य योगीन्दु मात्र विशुद्ध भाव को ही मुक्ति का मार्ग स्वीकार करते हैं । वे कहते हैं कि विशु़द्ध भाव से विचलित हुओं के मुक्ति किसी भी तरह संभव है ही नहीं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
69. सिद्धिहि ँ केरा पंथडा भाउ विसुद्धउ एक्कु।
जो तसु भावहँ मुणि चलइ सो किम होइ विमुक्क।।
अर्थ -मुक्ति का मार्ग एक शुद्ध भाव (ही) है। जो मुनि उस(विशुद्ध) के भाव से विचलित हो जाता हैै वह किस प्रकार मुक्त हो सकता है।
शब्दार्थ - सिद्धिहि ँ -मुक्ति का, केरा- सम्बन्धवाचक परसर्ग, पंथडा-मार्ग, भाउ-भाव, विसुद्धउ-विशुद्ध, एक्कु-एक, जो - जो, तसु- उसके, भावहँ-भाव से, मुणि-मुनि, चलइ-विचलित हो जाता है, सो-वह, किम -किस प्रकार, होइ-हो सकता है, विमुक्क-मुक्त।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.