121. धंधइ पडियउ सयलु जगु कम्मइँ करइ अयाणु।
मोक्खहँ कारणु एक्कुु खणु णवि चिंतइ अप्पाणु।।
अर्थ -धंधे में फँसा हुआ समस्त अज्ञानी जगत (ज्ञानावरणादि आठों) कर्मों को करता है,(किन्त)ु मोक्ष का हेतु अपनी आत्मा का चिंतन एक क्षण भी नहीं करता है।
शब्दार्थ -धंधइ-धंधे में, पडियउ-फँसा हुआ, सयलु - समस्त, जगु-जग, कम्मइँ-कर्मों को, करइ-करता है, अयाणु-अज्ञानी, मोक्खहँ -मोक्ष का, कारणु -हेतु, एक्कुु-एक, खणु-क्षण, णवि-भी, नहीं, चिंतइ-चिंतन करता है, अप्पाणु-आत्मा का।
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