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अशुभ, शुभ व शुद्ध भाव का संक्षेप में कथन


Sneh Jain

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आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि शुभ भाव से व्यक्ति अच्छे कर्म करता है किन्तु उससे कर्म बंध होता है और अशुभ भाव से व्यक्ति बुरे कर्म करता है और उससे भी कर्म बंध होता है। मात्र एक शुद्ध भाव ही वह भाव है जिससे व्यक्ति कर्म बन्ध नहीं करता है। शुद्ध भाव में रत व्यक्ति समस्त कर्म करते हुए भी कर्म बन्धन से परे होता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -

71.   सुह-परिणामे धम्मु पर असुहे होइ अहम्मु।

     दोहि वि एहि विवज्जियउ सुद्धु बंधइ कम्मु।।

अर्थ -शुभ भाव से धर्म और अशुभ से अधर्म होता है, (तथा) इन दोनों से रहित हुआ शुद्ध भाव कर्म को नहीं बांँधता है।

शब्दार्थ - सुह-परिणामे - शुभ परिणाम से, धम्मु-धर्म, पर -और, असुहे -अशुभ से, होइ-होता है, अहम्मु-अधर्म, दोहि - दोनों से, वि-ही, एहि -इन, विवज्जियउ-रहित हुआ, सुद्धु-शुद्ध, -नहीं, बंधइ-बांधता है, कम्मु-कर्म।

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