कभी कभी पाप भी हितकर हो जाते हैं
आचार्य योगीन्दु ने यहाँ बहुत ही करुणापूर्वक शब्दों में सभी जीवों को समझाया है कि यदि हमसे अज्ञानवश पाप युक्त क्रिया हो भी गयी है तो हमें परेशान होने की ज्यादा आवश्यक्ता नहीं है बल्कि विचारकर आगे के लिए सचेत होना आवश्यक है। वैसे भी देखा जाये तो सुख में व्यक्ति के सुधरने की गुंजाइश कम होती है, जबकि पाप का फल भोगने पर व्यक्ति दुःख से हटना चाहता है और फिर वह मोक्ष मार्ग पर ले जानेवाले मार्ग पर चल देता है। वे पाप ही होते हैं जो व्यक्ति को आगे मोक्ष मार्ग पर लगा देते है। आचार्य ने अपने सुंदर शब्दों में इसका जिस प्रकार कथन किया है वह दृष्टव्य है। देखिये इसे आगे के दोहे में -
56. वर जिय पावइँ संुदरइँ णाणिय ताइँ भणंति।
जीवहँ दुक्खइँ जणिवि लहु सिवमइँ जाइँ कुणंति।
अर्थ -56. हे जीव! ज्ञानी उन पापों को भी सुन्दर कहते हैं, जो जीवों के लिए दुःख पैदा कर (उनमें) शीघ्र मोक्ष (जानेवाली) बुद्धि उत्पन्न कर देते हैं।
वर - श्रेष्ठ, जिय-हे जीव!, पावइँ-पापों को संुदरइँ - सुंदर, णाणिय-ज्ञानीजन, ताइँ-उन, भणंति-कहते हैं, जीवहँ-जीवों के लिए, दुक्खइँ-दुःखों को, जणिवि-पैदाकर,, लहु-शीघ्र, सिवमइँ -मोक्ष जानेवाली बुद्धि, जाइँ-जो, कुणंति-उत्पन्न कर देते हैं।
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