ज्ञान के बिना शान्ति नहीं है
आचार्य योगीन्दु स्पष्टरूप से कहते है कि ज्ञान के अभाव में जीव को शान्ति मिल ही नहीं सकती । पानी के बहुत विलोडन किये हुए से हाथ चिकना नहीं होता, मन्थन तो घी का ही करना होगा। उसी प्रकार ज्ञानपूर्वक जीवन के मन्थन से ही शान्ति का मार्ग तलाश कर उस पर चलने से ही शान्ति प्राप्त की जा सकती है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
74. णाण-विहीणहँ मोक्खु-पउ जीव म कासु वि जोइ।
बहुएँ सलिल-विरोलियइँ करु चोप्पडउ ण होइ।।
अर्थ - हे जीव! ज्ञान रहित किसी के लिए भी मोक्ष पद (शान्ति की स्थिति) मत समझ। पानी के बहुत विलोडन किये हुए से (भी) हाथ चिकना नहीं होता।
शब्दार्थ - णाण-विहीणहँ-ज्ञान से रहित, मोक्खु-पउ -मोक्ष पद, जीव- हे जीव!, म-मत, कासु - किसी के लिए, वि- भी, जोइ-समझ, बहुएँ - बहुत, सलिल-विरोलियइँ - पानी के विलोडन किये हुए से, करु-हाथ, चोप्पडउ - चिकना, ण 7 नहीं, होइ- होता।
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