शुभ कर्म मात्र पुण्य के कारण हैं मोक्ष के कारण नहीं हैं
आचार्य योगीन्दु स्पष्टरूप से कहते हैं कि मोक्ष अर्थात् मुक्ति कर्मों के क्षय से ही संभव है। परमेश्वरों की, शास्त्रों की (और) मुनिवरों की भक्ति से तो पुण्य होता है और वह भी यदि स्वदर्शन सहित नहीं हो तो आगे चलकर पाप में परिवर्तन हो जाता है। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा -
61. देवहं सत्थहं मुणिवरहँ भत्तिए पुण्णु हवेइ।
कम्म-क्खउ पुणु होइ णवि अज्जउ संति भणेइ।।
अर्थ - परमेश्वरों की, शास्त्रों की (और) मुनिवरों की भक्ति से पुण्य होता है, लेकिन कर्मों का क्षय नहीं होता। शान्ति (प्राप्त) मुनि ऐसा कहते हैं।
शब्दार्थ - देवहं-परमेश्वरों की, सत्थहं-शास्त्रों की, मुणिवरहँ-मुनिवरों की, भत्तिए-भक्ति से, पुण्णु-पुण्य, हवेइ-होता है, कम्म-क्खउ-कर्मों का क्षय, पुणु-किन्तु, होइ-होता है, णवि-नहीं, अज्जउ-मुनि, संति -शान्ति, भणेइ- कहते हैं।
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