अज्ञानी का कथन
योगी की क्रियाओं को समझाने के बाद आगे आचार्य योगीन्दु मोही संसारी जीवों की क्रियाओं का कथन करते हैं। वे कहते हैं कि मोह में तल्लीन जीव बंध और मोक्ष के कारण को नहीं समझता इसलिए वह पुण्य और पाप करता रहता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
53. बंधहँ मोक्खहँ हेउ णिउ जो णवि जाणइ कोइ।
सो पर मोहे करइ जिय पुण्णु वि पाउ वि लोइ।।53।।
अर्थ - जो कोई भी अपने बंध और मोक्ष के कारण को नहीं जानता है, मोह में तल्लीन वह जीव लोक में पुण्य और पाप दोनों को ही करता है।
शब्दार्थ - बंधहँ - बंध, मोक्खहँ-मोक्ष के, हेउ-कारण को, णिउ-अपने, जो-जो, णवि-नहीं, जाणइ-जानता है, कोइ-कोई, सो-वह, पर-तल्लीन, मोहे-मोह में, करइ-करता है, जिय-जीव, पुण्णु -पुण्य, वि-और, पाउ -पाप, वि -ही, लोइ-लोक में।
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.