स्व - बोध ही सच्चा ज्ञान है
आचार्य योगीन्दु ने पूर्व में कहा कि ज्ञान के बिना शान्ति नहीं हैं। आगे इसका विस्तार करते हुए आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि स्व-बोध ही सच्चा ज्ञान है। वैसे यदि हम इसको अनुभव करें तो हम पायेंगे कि वास्तव में जिसको अपना ही बोध नहीं है उसको पर का बोध होना कैसे सम्भव है ? दूसरे शब्दों में जिसको अपने ही सुख-दुःख का एहसास नहीं हो वह दूसरों के सुख में कैसे सहयोगी हो सकता है। जब हम अपनी ही पीडा का अनुभव कर उसको दूर करने का प्रयत्न करेंगे तभी हम हम दूसरों की पीड़ा का अनुभव कर उसको दूर करने में सहयोग देंगे। धर्म के महत्वपूर्ण अंग जिस तपस्या को हम बहुत महत्व देते है वह तपस्या भी स्व बोध के अभाव में दुःखों का कारण बन जाती है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
75. जं णिय-बोहहँ बाहिरउ णाणु वि कज्जु ण तेण।
दुक्खहँ कारणु जेण तउ जीवहँ होइ खणेण।।
अर्थ - जो स्व-बोध से बाहर का ज्ञान हैै उस (बाहरी ज्ञान) से भी प्रयोजन नहीं है, क्योंकि (स्वबोध के अभाव से) (बाहरी) तप जीवों के लिए शीध्र दुःखों का कारण होता है।
शब्दार्थ - जं - जो, णिय-बोहहँ-स्व-बोण का, बाहिरउ-बाहर का, णाणु -ज्ञान, वि -भी, कज्जु-प्रयोजन, ण-नहीं, तेण-उससे, दुक्खहँ -दुःखों का, कारणु-कारण, जेण -कयोंकि, तउ-तप, जीवहँ -जीवों के लिए, होइ -होता है, खणेण-शीघ्र।
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