स्व दर्शन से ही सुख की प्राप्ति संभव है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि स्व दर्शन के साथ ही पुण्य कार्यकारी है। स्व दर्शन के अभाव में पुण्य भी दुखदायी है।
59. जे णिय-दंसण अहिमुहा सोक्खु अणंतु लहंति।
तिं विणु पुण्णु करंता वि दुक्खु अणंतु सहंति।।59।।
अर्थ - जो निज दर्शन के सम्मुख हैं,(वे) अनन्त सुख को प्राप्त करते हैं और उसके बिना वे पुण्य करते हुए भी अनन्त दुःख झेलते हैं।
शब्दार्थ - जे-जो, णिय-दंसण अहिमुहा- निज दर्शन के सम्मुख हैं, सोक्खु-सुख को, अणंतु-अनन्त, लहंति-प्राप्त करते हैं, तिं-उसके, विणु-बिना, पुण्णु-पुण्य, करंता-करते हुए, वि-भी, दुक्खु-दुःख, अणंतु-अनन्त, सहंति-झेलते हैं।
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