गति का आधार कर्म ही है
आचार्य योगीन्दु कहते है कि हमारी गति का आधार हमारे कर्म ही हैं। हमने पाप और पुण्य दोनों प्रकार के कर्म किये थे, इसलिए हमने यह मनुष्य गति पायी। जब हम पाप (अशुभ) कर्म करेंगे तो हम नारकी और तिर्यंच गति में जन्म लेंगे और जब पुण्य (शुभ) कर्म करेंगे तो देव गति प्राप्त करेंगे। यदि हम पाप पुण्य की क्रियाओं से रहित होकर सम्पूर्ण कर्मों का नाश कर देंगे तो मोक्ष गति को प्राप्त होंगे। इसलिए हमारी गति हमारे अपने कर्मों के आधार पर ही सुनिश्चित है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
63. पावे ँ णारउ तिरिउ जिउ पुण्णे ँ अमरु वियाणु ।
मिस्से माणुस-गइ लहइ दोहि वि खइ णिव्वाणु।।63।।
अर्थ - जीव पाप से नारकी (नरक में उत्पन्न प्राणी), पशु-पक्षी आदि प्राणी (तथा) पुण्य से देव और (पाप-पुण्य) दोनों के मिश्रण से मनुष्य गति (और) (पाप-पुण्य) दोनों के विनाश से मोक्ष को प्राप्त करता है। (ऐसा तू ) विशेष रूप से जान।
शब्दार्थ - पावे ँ -पाप से, णारउ-नारकी, तिरिउ-पशु-पक्षी आदि प्राणी, जिउ-जीव, पुण्णे ँ -पुण्य से, अमरु-देव, वियाणु - जान, मिस्से -मिश्रण से, माणुस-गइ-मनुष्य गति, लहइ-प्राप्त करता है, दोहि- दोनों के, वि-और, खइ-विनाश से, णिव्वाणु-मोक्ष को।
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