कल वर्णीजी के जयपुर यात्रा का ग्वालियर में सामान चोरी होने के कारण असफलता का उल्लेख प्रारम्भ हुआ। आज की प्रस्तुती में देखेंगे कि वर्णीजी ने उस समय कैसी-२ परिस्थितियों का सामना किया।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"जयपुर की असफल यात्रा"*
क्रमांक - २१
शाम की भूख ने सताया, अतः बाजार से एक पैसे के चने और एक छदाम का नमक लेकर डेरे मैं आया और आनंद से चने चबाकर सायंकाल जिन भगवान के दर्शन किये तथा अपने भाग्य की निंदा करता हुआ कोठी में सो गया।
प्रातःकाल सोनागिरी के लिए प्रस्थान किया। पास में न तो रोटी बनाने को बर्तन थे और न सामान ही था। एक गाँव में जो ग्वालियर से १२ मील होगा, वहाँ जाकर दो पैसे चने और थोड़ा सा नमक लेकर एक कुएँ पर आया और उन्हें आनंद से चवाकर विश्राम के बाद सायंकाल चल दिया।
१२ मील चलकर फिर दो पैसे की वियालू की। फिर पंचपरमेष्ठी का ध्यान कर सो गया। यही विचार आया कि जन्मान्तर में जो कमाया था उसे भोगने में अब आनाकानी से क्या लाभ?
इस प्रकार ३ या ४ दिन बाद सोनागिर आ गया। फिर से सिद्धक्षेत्र की वंदना की। पुजारी के बर्तनों में भोजन बनाकर फिर पैदल चल दतिया आया। मार्ग में चने खाकर ही निर्वाह करता था।
दतिया में एक पैसा भी पास न रहा, बाजार में गया, पास में कुछ न था, केवल एक छतरी थी। दुकानदार से कहा- 'भैया! इस छतरी को लेलो।' उसने कहा- 'चोरी की तो नहीं है, मैं चुप रह गया। आँखों में अश्रु आ गए, परंतु उसने उन अश्रुओं को देखकर कुछ भी संवेदना प्रगट न की।'
कहना लगा- 'लो छह आना पैसे ले जाओ।' मैंने कहा छतरी नवीन है, कुछ और दे दो।' उसने तीव्र स्वर में कहा- 'छह आने ले जाओ, नहीं तो चले जाओ।' लाचार छह आने लेकर चल पड़ा।
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?? आजकी तिथी- वैशाख शुक्ल१२?
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