?असाधारण व्यक्तित्व - अमृत माँ जिनवाणी से - १३५
? अमृत माँ जिनवाणी से - १३५ ?
"असाधारण व्यक्तित्व"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का व्यक्तित्व असाधारण रहा है। सारा विश्व खोजने पर भी वे अलौकिक ही लगेंगे। ऐसी महान विभूति के अनुभवों के अनुसार प्रवृत्ति करने वालों को कभी भी कष्ट नहीं हो सकता।
एक दिन महाराज ने कहा था- हम इंद्रियों का तो निग्रह कर चुके हैं। हमारा ४० वर्ष का अनुभव है। सभी इंद्रियाँ हमारे मन के आधीन हो गई हैं। वे हम पर हुक्म नहीं चलाती हैं।"
उन्होंने कहा था- "अब प्राणी संयम अर्थात पूर्णरूप से जीवों की रक्षा पालन करना हमारे लिए कठिन हो गया है। कारण नेत्रों की ज्योति मंद हो रही है। अतः सल्लेखना की शरण लेनी पड़ेगी। हमें समाधी के लिए किसी को णमोकार तक सुनाने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
? स्वाध्याय चरित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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