स्वर्गारोहण की रात्रि का वर्णन - अमृत माँ जिनवाणी से - १२५
? अमृत माँ जिनवाणी से - १२५ ?
"स्वर्गारोहण की रात्रि का वर्णन"
आचार्य महाराज का स्वर्गारोहण भादों सुदी दूज को सल्लेखना ग्रहण के ३६ वें दिन प्रभात में ६ बजकर ५० मिनिट पर हुआ था।
उस दिन वैधराज महाराज की कुटि में रात्रि भर रहे थे। उन्होंने महाराज के विषय में बताया था कि- "दो बजे रात को हमने जब महाराज की नाडी देखी, तो नाड़ी की गति बिगड़ी हुई अनियमित थी। तीन, चार ठोके के बाद रूकती थी, फिर चलती थी। हाथ-पैर ठन्डे हो रहे थे। रुधिर का संचार कम होता जा रहा था। चार बजे सबेरे श्वास कुछ जोर का चलने लगा, तब हमने कहा- "अब सावधानी की जरुरत है। अन्त अत्यंत समीप है।"
सबेरे ६ बजे महाराज का संस्तर से उठाने का विचार क्षुल्लक सिद्धिसागर ने व्यक्त किया। महाराज ने शिर हिलाकर निषेध किया। उस समय वे सावधान थे। उस समय श्वास जोर-जोर से चलती थी। बीच में धीरे-२ रूककर फिर चलने लगती थी। उस समय महाराज के कर्ण में भट्टारक लक्ष्मीसेनजी 'ऊँ नमः सिद्धेभ्यः' तथा 'णमोकार मन्त्र' सुनाते थे।
६ बजकर ४० मिनिट पर मेरे कहने पर महाराज को बैठाया, पद्मासन लगवाया, कारण कि अब देर नहीं थी। अब श्वास मंद हो गई। ओष्ठ अतिमंद रूप से हिलते हुए सूचित होते थे मानो वे जाप कर रहे हों। एक दीर्ध श्वास आया और हमारा सौभाग्य सूर्य अस्त हो गया। उस समय उनके मुख से अंत में "ॐ सिद्धाय" शब्द ध्वनि में निकले थे।"
वैद्यराज ने कहा- "हमारी धारणा है कि महाराज का प्रणोत्क्रमण नेत्रों द्वारा हुआ। मुख पर जीवित सदृश तेज रहा आया था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.