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धर्ममाता श्री चिरोज़ा बाई जी -१८


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

          धर्ममार्ग ही अपना लक्ष्य रखने वाले किसी व्यक्ति को किसी की ओर आगे बढ़ने को सम्बल मिले, किसी का सहारा मिले अथवा प्रोत्साहन मिले तो वह धर्मात्मा मोक्ष मार्ग में भी आगे बढ जाता है। मेरी दृष्टि में बाईजी द्वारा भी वर्णीजी को सम्बल मिला धर्म मार्ग में बढ़ने हेतु।

      बाईजी के वर्णीजी के प्रति इन शब्दों -  'बेटा ! तुम चिंता न करो, मैं तुम्हारा पुत्रवत पालन करूँगी। तुम निशल्य होकर धर्मध्यान करो।' को पढ़कर हम सभी यही सोचेंगे कि धर्मध्यान हेतु प्रबल उपादान शक्ति लिए वर्णीजी की आत्मा को आगे बढ़ने के लिए बाईजी एक आवश्यक निमित्त थी।

     आत्मकथा में आगे-२ रोचकता बढ़ती ही जाएगी।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?

      *"धर्ममाता श्री चिरौंजाबाई जी"*

                       क्रमांक - १८

               उस समय वहाँ उस गाँव के प्रतिष्ठित व्यक्ति बसोरेलाल आदि बैठे हुए थे। वे मुझसे बोले - 'तुम चिंता न करो, हमारे यहाँ रहो और हम लोगों को दोनों समय पुराण सुनाओ। हम लोग आपको कोई कष्ट न होने देंगे।'

          वहाँ पर बाईजी भी बैठी थीं। सुनकर कुछ उदास हो गईं और बोलीं - 'बेटा ! घर पर चलो।' मैं उनके साथ घर चला गया। 

          घर पहुँच कर सांत्वना देते हुए उन्होंने कहा- 'बेटा ! चिंता मत करो, मैं तुम्हारा पुत्रवत पालन करूँगी। तुम निशल्य होकर धर्म साधन करो और दशलक्षण पर्व में यही आ जाओ; किसी के चक्कर में मत आओ। क्षुल्लक महराज स्वयं पढ़े नहीं हैं, तुम्हे वे क्या पढ़ाएंगे? यदि तुम्हे विद्याभ्यास करना ही इष्ट है, तो जयपुर चले जाना।'

          यह बात आज से ५० वर्ष पहले की है। उस समय इस प्रांत में कहीं भी विद्या का प्रचार न था। ऐसा सुनने में आता था जयपुर में बड़े-२ विद्धवान हैं। मैं बाईजी की सम्मति से संतुष्ट हो मध्यन्होंपरांत जतारा चला गया।                

? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?? आजकी तिथी- वैशाख शुक्ल ९?

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