Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
  • entries
    70
  • comments
    0
  • views
    7,844

☀रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर -४०


Abhishek Jain

251 views

☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,

      अद्भुत भावाभिव्यक्ति पूज्य वर्णीजी की श्री वीर प्रभु के चरणों में।

      मैं पूर्ण विश्वास के साथ कर सकता हूँ स्वाध्याय की रुचि रखने वाला हर एक श्रावक जो प्रस्तुत भावों को ध्यानपूर्वक पढ़ता है वह अद्भुत अभिव्यक्ति कहे बिना रहेगा ही नहीं।

       आत्मकथा प्रस्तुती का यह प्रारंभिक चरण ही है इतने में ही हम पूज्य वर्णीजी के भावों की गहराई से उनका परिचय पाने लगे हैं।

      उनकी आत्मकथा ऐसे ही तत्वपरक उत्कृष्ट भावों से भरी पढ़ी है। निश्चित ही वर्णीजी की आत्मकथा एक मानव कल्याणकारी ग्रंथ है।

?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?

          *"रेशन्दीगिरि व कुण्डलपुर"*

                     *क्रमांक - ३९*

        'जिस प्रकार कि भोक्तापन आत्मा का स्वभाव नहीं है। अज्ञान से ही यह आत्मा कर्ता बनता है। अतः अज्ञान के अभाव में अकर्ता ही है।'

        अज्ञानी जीव भक्ति को ही सर्वस्य मान तल्लीन हो जाते हैं, क्योंकि उससे आगे उन्हें कुछ सूझता ही नहीं। परंतु जब ज्ञानी जीव जब श्रेणी चढ़ने को समर्थ नहीं होता तब अन्यत्र- जो मोक्षमार्ग के पात्र नहीं उनमें, राग न हो इस भाव से तथा तीव्र रागज्वर के अपगमकी भावना से श्री अरिहंत देव की भक्ति करता है। श्री अरिहंत देव के गुणों में अनुराग होना यही तो भक्ति है।

       अरिहंत के गुण हैं- वीतरागता, सर्वज्ञता तथा मोक्षमार्ग का नेतापना। उनमें अनुराग होने से कौन सा विषय पुष्ट हुआ? यदि इन गुणों में प्रेम हुआ तो उन्हीं की प्राप्ति के अर्थ तो प्रयास है।

       सम्यकदर्शन होने के बाद चारित्र मोह का चाहे तीव्र उदय हो चाहे मंद उदय हो, उसकी जो प्रवृत्ति होती है उसमें कर्तव्य बुद्धि नहीं रहती। अतएव श्री दौलतरामजी ने एक भजन में लिखा है कि-

      'जे भव-हेतु अबुधिके तस करत बन्ध की छटा छटी'

     अभिप्राय के बिना जो क्रिया होती है वह बंध की जनक नहीं। यदि अभिप्राय के अभाव में भी क्रिया बन्धजनक होने लगे तब यथख्यातचारित्र होकर भी अबन्ध नहीं हो सकता, अतः यह सिद्ध हुआ कि कषाय के सद्भाव में ही क्रिया बन्ध की उत्पादक है।

       इसलिए प्रथम तो हमें अनात्मीय पदार्थों में जो आत्मीयता का अभिप्राय है और जिसके सद्भाव में हमारा ज्ञान तथा चारित्र मिथ्या हो रहा है उसे दूर करने का प्रयास करना चाहिए। तब विपरीत अभिप्राय के अभाव में आत्मा की जो अवस्था होती है वह रोग जाने के बाद रोगी के जो हल्कापन आता है तत्सदृश हो जाती है।

       अथवा भारपगमन के बाद जो दशा भारवाहीकी होती है वही मिथ्या अभिप्राय के जाने के बाद आत्मा की हो जाती है और उस समय उसके अनुमापक प्रशम, संवेग, अनुकम्पा आदि गुणों का विकास आत्मा में स्वयमेव हो जाता है।

        ? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?   ?आजकी तिथी- ज्येष्ठ शुक्ल१४?

0 Comments


Recommended Comments

There are no comments to display.

Guest
Add a comment...

×   Pasted as rich text.   Paste as plain text instead

  Only 75 emoji are allowed.

×   Your link has been automatically embedded.   Display as a link instead

×   Your previous content has been restored.   Clear editor

×   You cannot paste images directly. Upload or insert images from URL.

  • अपना अकाउंट बनाएं : लॉग इन करें

    • कमेंट करने के लिए लोग इन करें 
    • विद्यासागर.गुरु  वेबसाइट पर अकाउंट हैं तो लॉग इन विथ विद्यासागर.गुरु भी कर सकते हैं 
    • फेसबुक से भी लॉग इन किया जा सकता हैं 

     

×
×
  • Create New...