जन्म और जैनत्व की ओर आकर्षण -९
☀जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज के वर्णन में आप वर्णी जी के प्रारंभिक जीवन में पिता के देहांत के उपरांत का वर्णन है। यही से हम सभी वर्णी जी के संघर्ष का जीवन देखेंगे।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"जन्म और जैनत्व की ओर आकर्षण"*
क्रमांक - ९
मेरे पिता ही व्यापार करते थे, मैं तो बुद्धू था ही - कुछ नहीं जनता था। अतः पिता के मरने के बाद मेरी माँ बहुत व्यथित हुईं। इससे मैंने मदनपुर गाँव में मास्टरी कर ली।
वहाँ चार मास रह कर नार्मल स्कूल में शिक्षा लेने के अर्थ आगरा चला गया, परंतु वहाँ दो मास ही रह सका। इसके बाद अपने मित्र ठाकुरदास के साथ जयपुर की तरफ चला गया।
एक माह बाद इंदौर पहुँचा, शिक्षा-विभाग में नौकरी कर ली। देहात में रहना पड़ा। वहाँ भी उपयोग की स्थिरता न हुई, अतः फिर देश चला आया।
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?? आजकी तिथी- वैशाख कृष्ण १२?
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