☀जन्म और जैनत्व की ओर आकर्षण - ६
☀
जय जिनेन्द्र बंधुओं,
आज के प्रसंग में जैनेत्तर कुल में जन्में बालक गणेश प्रसाद के जिन धर्म के प्रति श्रद्धान को जानकर सोचेंगे इसे कहते है जिनधर्म की सच्ची श्रद्धा। यह तो शुरुबात है आगे वर्णी के पूरे जीवन में जिन धर्म के प्रति सच्ची व दृढ़ श्रद्धा देखने को मिलेगी।
आज का प्रकरण भी बहुत रोचक है।
?संस्कृति संवर्धक गणेशप्रसाद वर्णी?
*"जन्म और जैनत्व की ओर आकर्षण"*
क्रमांक - ६
मेरे कुल में यज्ञोपवीत संस्कार होता था। १२ वर्ष की अवस्था में बुड़ेरा गाँव से मेरे कुल-पुरोहित आए, उन्होंने मेरा यज्ञोपवीत संस्कार कराया, मंत्र का उपदेश दिया। साथ में यह भी कहा कि यह मंत्र किसी को मत बताना, अन्यथा अपराधी होंगे।
मैंने कहा - 'महराज ! आपके तो हजारों शिष्य हैं। आपको सबसे अधिक अपराधी होना चाहिए। आपने मुझे दीक्षा दी, यह ठीक नहीं किया, क्योंकि आप स्वयं सदोष हैं।'
इस पर पुरोहित जी मुझ पर बहुत नाराज हुए। माँने भी बहुत तिरस्कार किया, यहाँ तक कहा कि ऐसे पुत्र से तो अपुत्रवती ही मैं अच्छी थी।
मैंने कहा- 'माँजी ! आपका कहना सर्वथा उचित है, मैं अब इस धर्म में नहीं रहना चाहता। आज से मैं श्री जिनेन्द्रदेव को छोड़कर अन्य को न मानूँगा। मेरा पहले से यही भाव था। जैनधर्म ही मेरा कल्याण करेगा। बाल्यावस्था से ही मेरी रुचि इसी धर्म की ओर थी।'
? *मेरी जीवन गाथा - आत्मकथा*?
? आजकी तिथी- वैशाख कृष्ण ९?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.