वानरों पर प्रभाव - अमृत माँ जिनवाणी से - ४
? अमृत माँ जिनवाणी से - ४ ?
"वानरो पर प्रभाव"
शिखरजी की तीर्थवंदना से लौटते हुए महाराज का संघ सन् १९२८ में विंध्यप्रदेश में आया। विध्याटवी का भीषण वन चारों ओर था। एक ऐसी जगह पर संघ पहुँचा, जहाँ आहार बनाने का समय हो गया था। श्रावक लोग चिंतित थे कि इस जगह वानरों की सेना स्वछन्द शासन तथा संचार है, ऐसी जगह किस प्रकार भोजन तैयार होगा और किस प्रकार इन सधुराज की विधि सम्पन्न होगी? उस स्थान से आगे चौदह मील तक ठहरने योग्य जगह नही थी।
संघ के श्रावकों ने कठिनता से रसोई तैयार की, किन्तु डर था कि महाराज के हाथ से ही बंदर ग्रास लेकर ना भागे, तब तो अंतराय आ जायेगा। इस स्थिति में क्या किया जाय? लोग चिंतित थे।
चर्या का समय आया। शुद्धि के पश्चात जैसे ही आचार्य महाराज चर्या के लिए निकले कि सैकड़ो बंदर अत्यंत ही शांत हो गए और चुप होकर महाराज की चर्या की सारी विधि देखते रहे। बिना विध्न के महाराज का आहार हो गया। इसके क्षण भर पश्चात ही बंदरों का उपद्रव पूर्ववत प्रारम्भ हो गया। गृहस्थ बंदरों को रोटी खाने को देते जाते थे और स्वयं भी भोजन करते जाते थे।
ऐसी अपूर्व दशा महाराज के आत्मविकास व आध्यात्मिक प्रभाव को स्पष्ट करती है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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