☀स्थिर मन - अमृत माँ जिनवाणी से - १
? अमृत माँ जिनवाणी से - १ ?
"स्थिर मन"
एक बार लेखक ने आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज से पूछा, महाराज आप निरंतर स्वाध्याय आदि कार्य करते रहते है क्या इसका लक्ष्य मन रूपी बन्दर को बाँधकर रखना है जिससे वह चंचलता ना दिखाये।महाराज बोले, "हमारा बन्दर चंचल नहीं है"|
लेखक ने कहा, "महाराज मन की स्थिरता कैसे हो सकती है,वह तो चंचलता उत्पन्न करता ही है"
महाराज ने कहा, "हमारे पास चंचलता के कारण नहीं रहे है|जिसके पास परिग्रह की उपाधि रहती है उसको चिंता होती है,उसके मन में चंचलता होती है,हमारे मन में चंचलता नहीं है।हमारा मन चंचल होकर कहाँ जाएगा,इस बात के स्पष्टीकरण के हेतु आचार्य महाराज ने उदाहरण दिया -
"एक पोपट तोता जहाज के ध्वज के भाले पर बैठ गया,जहाज मध्य समुद्र में चला गया।उस समय वह पोपट उठकर बाहर जाना चाहे तो कहाँ जाएगा?
उसके ठहरने का स्थल भी तो होना चाहिए।इसीलिए वह एक ही जगह पर बैठा रहता है।
इस प्रकार घर परिवार आदि का त्याग करने के कारण हमारा मन चंचल होकर जाएगा कहाँ,यह बताओ?"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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