शिखरजी की वंदना से त्याग और नियम - अमृत माँ जिनवाणी से - ५
? अमृत माँ जिनवाणी से - ५ ?
"शिखरजी की वंदना से त्याग और नियम"
आचार्यश्री शान्तिसागर महाराज गृहस्थ जीवन में जब शिखरजी की वंदना को जब बत्तीस वर्ष की अवस्था में पहुंचे थे, तब उन्होंने नित्य निर्वाण भूमि की स्मृति में विशेष प्रतिज्ञा लेने का विचार किया और जीवन भर के लिए घी तथा तेल भक्षण का त्याग किया।घर आते ही इन भावी मुनिनाथ ने एक बार भोजन की प्रतिज्ञा ले ली।
रोगी व्यक्ति भी अपने शारीर रक्षण हेतु कड़ा संयम पालने में असमर्थ होता है किन्तु इन प्रचंड -बली सतपुरुष का रसना इंद्रिय पर अंकुश लगाने वाला महान त्याग वास्तव में अपूर्व था।
शास्त्र में रसना इंद्रिय तथा स्पर्शन इंद्रिय को जीतना बड़ा कठिन कहा है।
उपरोक्त प्रकार के अनेक आहार की लोलुपता त्याग कराने वाले नियमो द्वारा इन्होंने रसना इंद्रिय को अपने आधीन कर लिया तथा आजीवन ब्रम्हचर्य व्रत द्वारा स्पर्शन इंद्रिय पर विजय प्राप्त की।
शिखरजी की वंदना ने महाराज को गृहस्थ जीवन में संयम के शिखर पर चढ़ने के लिए त्यागी बनने की प्रबल प्रेरणा तथा महान विशुद्ता प्रदान की थी।
? स्वाध्याय चरित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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