सामयिक बात - अमृत माँ जिनवाणी से - ९
? अमृत माँ जिनवाणी से - ९ ?
सामयिक बात
आचार्य शान्तिसागरजी महाराज सामयिक बात करने में अत्यंत प्रवीण थे।
एक दिन की बात है, शिरोड के बकील महाराज के पास आकर कहने लगे -
"महाराज, हमे आत्मा दिखती है। अब और क्या करना चाहिए?"
कोई तार्किक होता, तो बकील साहब के आत्मदर्शन के विषय में विविध प्रश्नो के द्वारा उनके कृत्रिम आत्मबोध की कलई खोलकर उनका उपहास करने का उद्योग करता, किन्तु यहॉ संतराज आचार्य महाराज के मन में उन भले बकील साहब के प्रति दया का भाव उत्पन्न हुआ।
उन्होंने कहा- " अब तुम्हे माँस,मदिरा आदि छोड़ देना चाहिए: इससे आत्मा का अच्छी तरह दर्शन होगा।"
अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा था- "पाप का त्याग करने से यह जीव देवगति में तीर्थंकर की अकृतिम मूर्तिदर्शन आदि द्वारा सम्यक्त्व को प्राप्त करेगा और तब यथार्थ में आत्मा का दर्शन होगा।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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