मिथ्या देवों की उपासना का निषेध - अमृत माँ जिनवाणी से - २
? अमृत माँ जिनवाणी से - २ ?
"मिथ्या देवों की उपासना का निषेध"
"जैन मंत्र का अपूर्व प्रभाव"
जैनवाणी नामक ग्राम में महाराज जैनियो को मिथ्यादेवों की पूजा के त्याग करा रहे थे, तब ग्राम के मुख्य जैनियो ने पूज्यश्री से प्रार्थना की, "महाराज ! आपकी सेवा में एक नम्र विनती है।"महाराज ने बड़े प्रेम से पूछा - "क्या कहना है कहो?"
जैन बन्धु बोले - "महाराज ! इस ग्राम में सर्प का बहुत उपद्रव है। सर्प का विष उतारने में निपुण एक जैनी भाई हैं। वह मिथ्या देवो की भक्ति करके,उस मंत्र पढ़कर सर्प का विष उतारता है। उसने यदि मिथ्यात्व त्याग की प्रतिज्ञा ले ली,तो हम सब को बड़ी विपत्ति उठानी पड़ेगी।
इसीलिए उसे छोड़कर सबको आप नियम देवें,इसमे हमारा विरोध नहीं है। आगे आपकी आज्ञा शिरोधार्य है।"
अब तो विकट प्रश्न आ गया जो आज बड़े-२ लोगो को विचलित किए बिना नहीं रहेगा। तार्किक व्यक्ति को लोकोपकार, सार्वजनिक हित,जीवदया,प्राणरक्षा के नाम पर अथवा अन्य भी युक्तिवाद की ओट में उस मांत्रिक जैन को नियम के बंधन से मुक्ति देने के विषय में आपको विशेष विचार करना होगा और सार्वजानिक हित के हेतु केवल एक व्यक्ति को पूजा के लिए छुटटी देनी होगी।
पूज्य महाराज ने गंभीरता पूर्वक इस समस्या पर विचार किया और उस जैन बन्धु से कहा-"जैन मंत्रो में अचिन्त्य सामर्थ पाई जाती है।हम तुम्हे एक मंत्र बताते हैं।उसका विधिपूर्वक प्रयोग करो यदि दो माह के भीतर यह मंत्र तुम्हारा कार्य ना करे तो तुम बंधन में नहीं रहोगे।अतः तुम दो माह के लिए मिथ्यात्व का त्याग करो"|
महाराज ने उस मांत्रिक बंधु को मित्यात्व का त्याग कराकर मंत्र दिया तथा विधि भी कह दी।इतने में कोई व्यक्ति समाचार लाया और बोला की मेरे बैल को सर्प ने काट लिया है।वह तुरंत पञ्च परमेष्ठी का स्मरण करता हुआ वह पहुंचा और जैन मंत्रो का प्रयोग किया ,तत्काल विष बाधा दूर हो गई।
इसके पश्यात मंत्र का सफल प्रयोग देखकर वह महाराज के पास आया और बोला- "महाराज अब मुझे जीवन भर के लिए मिथ्यात्व के त्याग का नियम दे दीजिये"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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