अपूर्व दयालुता - अमृत माँ जिनवाणी से - ६
? अमृत माँ जिनवाणी से - ६ ?
"अपूर्व दयालुता"
भोज ग्राम में गणु जयोति दमाले नामक एक मराठा किसान ८० वर्ष की अवस्था का था।वह एक ब्राम्हण के खेत में मजदूरी करता रहा था।उस बृद्ध मराठा को जब यह समाचार पहुँचा कि महाराज के जीवन के सम्बन्ध में परिचय पाने को कोई व्यक्ति बाहर से आया है, तो वह महाराज का भक्त मध्यान्ह में दो मील की दूरी से भूखा ही समाचार देने को हमारे पास आया| उस कृषक से इस प्रकार की महत्त्व की सामग्री ज्ञात हुई:
उसने बताया, "हम जिस खेत में काम करते थे उसे लगा हुआ हमारा खेत था।उनकी बोली बड़ी प्यारी लगती थी।मैं गरीब हूँ और वे श्रीमान हैं, इस प्रकार का अहंकार उनमे नहीं था।
हमारे खेत में अनाज को खाने को सैकड़ो पक्षी आ जाते थे, मैं उनको उडाता था, तो वे उनके खेत में बैठ जाते थे।वे उन पक्षीयो को उड़ाते नहीं थे।पक्षी के झुंड के झुंड उनके खेत में अनाज खाया करते थे।
एक दिन मैंने कहा कि पाटील हम अपने खेत के सब पक्षीयो को तुम्हारे खेत में भेजेगे।
वे बोले कि तुम भेजो, वे हमारे खेत का सब अनाज खा लेंगे, तो भी कमी नहीं होगी।
इसके बाद उन्होंने पक्षीयो के पीने का पानी रखने की व्यवस्था खेत में कर दी।पक्षी मस्त होकर अनाज खाते थे और जी भर कर पानी पीते थे और महाराज चुपचाप यह द्रश्य देखते, मानो वह खेत उनका ना हो।
मैंने कहा पाटील तुम्हारे मन में इन पक्षीयो के लिए इतनी दया है, तो झाढ़ पर ही पानी क्यों नहीं रख देते हो?
उन्होंने कहा कि ऊपर पानी रख देने से पक्षीयो को नहीं दिखेगा, इसीलिए नीचे रखते हैं।
उनको देखकर कभी-२ मैं कहता था - "तुम ऐसा क्यों करते हो ? क्या बड़े साधु बनोगे ?"तब चुप रहते थे, क्योंकि व्यर्थ की बातें करना उन्होंने पसंद नहीं था।कुछ समय के बाद जब पूरी फसल आई, तब उनके खेत में हमारी अपेक्षा अधिक अनाज उत्पन्न हुआ था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.