?निर्वाण भूमी सम्मेद शिखरजी की वंदना - अमृत माँ जिनवाणी से - २८२
? अमृत माँ जिनवाणी से - २८२ ?
"निर्वाण भूमि सम्मेद शिखरजी की वंदना"
मंगल प्रभात का आगमन हुआ। प्रभाकर निकला। सामयिक आदि पूर्ण होने के पश्चात आचार्य महराज वंदना के लिए रवाना हो गए। ये धर्म के सूर्य तभी विहार करते हैं जब गगन मंडल में पौदगलिक प्रभाकर प्रकाश प्रदान कर इर्या समीति के रक्षण में सहकारी होता है। महराज भूमि पर दृष्टि डालते हुए जीवों की रक्षा करते पहाड़ पर चढ़ रहे थे।
?गंधर्व,सीतानाला स्याद्वाद
दृष्टि के प्रतीक?
विशेष अभ्यास तथा महान शारीरिक शक्ति के कारण वे शीघ्र ही गन्दर्भ नाले के पास पहुँच गए। कुछ काल के अनंतर सीता नाला मिला। वह जल प्रवाह कहता था - "जिस तरह मेरा प्रवाह बहता हुआ लौटकर नहीं आता इसी प्रकार जगत के जीवों का जीवन प्रवाह भी है।" ये दोनो निर्झर स्याद्वाद शैली से बहती हुई द्रव्य पर्याय रुप दृष्टि युगल के प्रतीक लगते थे। मार्ग में कंकर पत्थर की परवाह ना करते हुए महराज शैलराज के शिखर तक पहुँचते जा रहे थे।
क्रमशः.......
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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