इन्द्रिय जनित सुख, दुःख के कारण हैं
आचार्य योगीन्दु अपने साधर्मी साधुओं को समझाते हुए कहते हैं कि जब मात्र एक रूप में आसक्त हुए कीट पतंग जीव दीपक में जलकर मर जाते हैं,े शब्द विषय में लीन हिरण व्याघ के बाणों से मारे जाते हैं, हाथी स्पर्श विषय के कारण गड्ढे में पड़कर बाँधे जाते हैं, सुगंध की लोलुपता से भौरें कमल में दबकर प्राण छोड़ देते हैं और रस के लोभी मच्छ धीवर के जाल में पड़कर मारे जाते हैं, तो यह जानते हुए भी साधु विषयों में क्यों रमते हैं ? देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
112. रूवि पयंगा सद्दि मय गय फासइ णासंति।
अलिउल गंधइँ मच्छ रसि किम तहिं संतु रमंति।
अर्थ - रूप में (लीन) पतंगे, शब्द में (लीन) हिरण, स्पर्श में (लीन) हाथी, सुगंध के कारण भौंरें, (तथा) रस में (लीन) मच्छ नष्ट हो जाते हैं, (तब भी) साधु उन (विषयों) में क्यों रमते हैं?
शब्दार्थ - रूवि - रूप में,, पयंगा -पतंगे, सद्दि -शब्द में, मय-हिरण, गय-हाथी, फासइ-स्पर्श में, णासंति-नष्ट हो जाते हैं, अलिउल-भौरें, गंधइँ-सुगंध के कारण, मच्छ-मच्छ, रसि-रस में, किम-क्यों, तहिं-उनमें, संतु-साधु, रमंति-रमते हैं।
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