मोह ही दुःख का सबसे बडा कारण है
आचार्य योगीन्दु अपने साधर्मी योगीराज को सम्बोधित कर कहते हैं कि हे योगी! मोह ही समस्त दुःखों का कारण है, इसलिए तू मोह का पूरी तरह से त्याग कर। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
111. जोइय मोहु परिच्चयहि मोहु ण भल्लउ होइ।
मोहासत्तउ सयलु जगु दुक्खु सहंतउ जोइ।।
अर्थ -हे योगी! मोह को पूरी तरह छोड़ दे, मोह अच्छा नहीं होता है। मोह से लीन समस्त जगत (प्राणी) को (तू) दुःख सहता हुआ देख।
शब्दार्थ -जोइय- हे योगी! मोहु-मोह को, परिच्चयहि-पूरी तरह से छोड़, मोहु -मोह, ण-नहीं, भल्लउ-अच्छा, होइ-होता है, मोहासत्तउ-मोह में लीन, सयलु -समस्त, जगु-जग को, दुक्खु-दुःख, सहंतउ -सहता हुआ, जोइ-देख।
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