दुष्टजनों की संगति का दुष्परिणाम
आचार्य योगीन्दु अपने साधर्मी मुनिराजों को समझाते हैं कि दुष्टों की संगति दुष्टों के साथ हो तो सामान्य बात है लेकिन जब सज्जन दुष्टों की संगति करते हैं तो सज्जन व्यक्तियों के गुण नष्ट हो जाते हैं और उनकी सज्जनता भी दुर्जनता में बदलने लगती है। जिस प्रकार आग लोहे से मिलने पर हथोड़े से पीटी जाती है। इसलिए यदि सज्जनों को अपने गुणों में स्थित रहना है तो उनके लिए दुष्टों की संगति का त्याग अति आवश्यक है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
110. भल्लाहँ वि णासंति गुण जहँ संसग्ग खलेहिं।
वइसाणरु लोहहँ मिलिउ तें पिट्टियइ घणेहिं।।
अर्थ - (उन) सज्जनों के भी गुण नष्ट हो जाते हैं, जिनकी संगति दुष्टों के साथ होती है। इसीलिए लोहे के साथ मिली हुई आग हथोड़ों से पीटी जाती है।
शब्दार्थ - भल्लाहँ - सज्जनों के, वि-भी, णासंति-नष्ट हो जाते हैं, गुण-गुण, जहँ-जिनकी, संसग्ग -संगति, खलेहिं-दुष्टों के साथ, वइसाणरु-अग्नि, लोहहँ-लोहे से, मिलिउ-मिली हुई, तें-इसीलिए, पिट्टियइ -पीटी जाती है, घणेहिं-हथोड़ों से।
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