समभाव ही शान्ति प्राप्त करने का साधन है
आचार्य योगिन्दु स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि जो भी व्यक्ति सभी जीवों का एक सा स्वभाव या अवस्था स्वीकार नहीं करता, उसके समभाव नहीं हो सकता और समभाव के अभाव में वह अशान्त बना रहता है। यदि उसको शान्ति चाहिए तो उसके लिए यह आवश्यक है कि वह सभी जीवों की एक सी अवस्था स्वीकार कर सब के प्रति सम भाव रखे। यह समभाव ही संसाररूप सागर में शान्ति की प्राप्ति हेतु नाव के समान है। देखिये इससे सम्बन्धित अगला दोहा -
105 जो णवि मण्णइ जीव जिय सयल वि एक्क-सहाव।
तासु ण थक्कइ भाउ समु भव-सायरि जो णाव।।
अर्थ -हे प्राणी! जो सभी ही जीवों को एक स्वभाव नहीं मानता है उसके समभाव नहीं रहता है, जो (समभाव) संसाररूप सागर में (शान्ति की प्रात्ति हेतु) नाव (के समान है।)
शब्दार्थ - जो-जो, णवि-नहीं, मण्णइ-मानता है, जीव-जीवों को, जिय -हे प्राणी, सयल-सभी, वि-ही, एक्क-सहाव-एक स्वभाव, तासु - उसके, ण-नहीं, थक्कइ-रहता है, भाउ -भाव, समु - सम, भव-सायरि -संसाररूपी सागर में, जो - जो, णाव-नौका ।
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