अज्ञानी देह के भेद से जीवों में भेद मानता है
आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि जो प्राणी जीव का लक्षण दर्शन, ज्ञान और चारित्र को नहीं समझता वह ही अज्ञानी है। ऐसा अज्ञानी ही देह के भेद के आधार पर जीवों का अनेक प्रकार का भेद करता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
102. देह-विभेयइँ जो कुणइ जीवहँ भेउ विचित्तु।
सो णवि लक्खणु मुणइ तहँ दंसणु णाणु चरित्तु।।
अर्थ - जो देह के भेद से जीवों का अनेक प्रकार भेद करता है, वह उन (जीवों) का लक्षण दर्शन, ज्ञान और चारित्र को नहीं समझता है।
शब्दार्थ - देह-विभेयइँ - देह के भेद से, जो - जो, कुणइ-करता है, जीवहँ - जीवों का, भेउ-भेद, विचित्तु - अनेक प्रकार, सो - वह, णवि-नहीं, लक्खणु -लक्षण, मुणइ -समझता है, तहँ - उनका, दंसणु -दर्शन, ,णाणु-ज्ञान, चरित्तु- चारित्र को।
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