सभी जीव समान क्यों है ?
आचार्य योगीन्दु सभी जीव समान किस प्रकार हैं, इसको स्पष्ट करते हुए कहते हैं कि सभी जीनों को जो जो भी शरीर मिला है वह अपने अपने किये गये कर्मों के अनुसार मिला है, एक दूसरे के कर्म का फल किसे भी नहीं मिला। सभी जीव सभी स्थानों में और सब समय में उतने ही प्रमाण में होते हैं। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -
103. अंगइँ सुहुमइँ बादरइँ विहि-वसिँ होंति जे बाल।
जिय पुणु सयल वि तित्तडा सव्वत्थ वि सय-काल।।
अर्थ - जो अबोध सूक्ष्म और बादर शरीर (हैं) (वे) कर्मों की अधीनता से होते हैं।(वे) सभी जीव सभी
स्थानों में और सब समय में उतने (प्रमाण) ही हंै।
शब्दार्थ - अंगइँ-शरीर, सुहुमइँ-सूक्ष्म, बादरइँ-बादर, विहि-वसिँ -कर्मों की अधीनता से, होंति-होते हैं, ज-जोे, बाल-अबोध, जिय-जीव, पुणु-और, सयल-सभी, वि-ही, तित्तडा-उतने, सव्वत्थ-सब स्थान में, वि -और सय-काल-सभी समय में।
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