शुद्ध मन के लिए यह त्रिभुवन ही मोक्ष स्थल हैै
आचार्य योगीन्दु परमात्म प्रकाश के दूसरे मोक्ष अधिकार को इस दोहे के साथ समाप्त करते हैं। वे समापनरूप इस अन्तिम दोहे में स्पष्ट घोषणा करते हैं कि जिस दिन सभी जीवों का मन राग-द्वेष को समाप्त कर सभी जीवो को समान मान कर शुद्धरूप हो जायेगा, उस दिन समस्त त्रिभुवन में शान्ति हो जायेगी। यह त्रिभुवन ही शान्त अर्थात मोक्षस्थल बन जायेगा। देखिये इससे सम्बन्धित परमात्म प्रकाश के मोक्ष अधिकार का अन्तिम दोहा -
107. एक्कु करे मण बिण्णि करि मं करि वण्ण-विसेसु।
इक्कइँ देवइँ जे ँ वसइ तिहुयणु एहु असेसु।।
अर्थ - तूू अपने मन को एक कर (राग और द्वेष से) वर्ण भेद करके दो मत कर , क्योंकि यह सम्पूर्ण त्रिभुवन एक परमेश्वर में (ही) निवास करता है।
शब्दार्थ -एक्कु -एक, करे-कर, मण-मन को, बिण्णि -दो, करि-कर, मं -मत, करि-कर, वण्ण-विसेसु-वर्ण भेद, इक्कइँ-एक में, देवइँ -परमेश्वर, जे ँ-क्योंकि, वसइ-निवास करता है, तिहुयणु-त्रिभुवन, एहु-यह, असेसु-समस्त।
(बन्धुओं, आचार्य योगीन्दुदेव द्वारा रचित परमात्मप्रकाश का तृतीय महा अधिकार भी इसी रूप में आगे चलता रहेगा)।
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