Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

Blogs

Featured Entries

देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 24-26

प्रश्न 24                  राजा भरत ने मंत्री से राजा बाहुबलि का सिद्ध नहीं होना जानकर क्या किया ? उत्तर 24               राजा भरत ने राजा बाहुबलि को समझाने के लिए उनके पास दूत भेजा। प्रश्न 25                  दूत ने बाहुबलि के पास जाकर क्या कहा ? उत्तर 25               दूत ने कहा, हे राजन! आपको राजा भरत से जाकर मिलना चाहिए और जिस प्रकार दूसरे                               अट्ठानवे भाई उनकी सेवा कर जीते हैं, उसी प्रकार तुम भी अभिमान छोड़कर राजा भरत  की सेवा               

Sneh Jain

Sneh Jain

देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 21-23

प्रश्न    21                           ऋषभदेव के किस पुत्र को चक्रवर्ती की ऋद्धि प्राप्त हुई ? उत्तर     21                            राजा भरत को प्रश्न    22                           अयोध्या में चक्र प्रवेश नहीं करने पर राजा भरत ने क्या किया ? उत्तर    22                           राजा भरत क्रोध से भर उठा और उसने अपने मंत्रियों से पूछा-यश और जय का रहस्य जाननेवाले मंत्रियों! बताओ, क्या कोई ऐसा बचा                                           है जो मुझे सिद्ध नहीं हुआ  हो ?      

Sneh Jain

Sneh Jain

२४ अप्रैल २०१६ दिन रविवार, वैशाख कृष्ण द्वितीया की शुभ तिथी को २३ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ पार्श्वनाथ भगवान का गर्भ कल्याणक पर्व है।

२४ अप्रैल २०१६ दिन रविवार, वैशाख कृष्ण द्वितीया की शुभ तिथी को २३ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ पार्श्वनाथ भगवान का गर्भ कल्याणक पर्व है।

Abhishek Jain

Abhishek Jain

देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 18 - 20

प्रश्न 18                  ऋषभदेव को केवलज्ञान की प्राप्ति कहाँ हुई ? उत्तर 18               पुरिमताल उद्यान में प्रश्न 19                  ऋषभदेव के समवशरण का लोगों पर क्या प्रभाव पडा़ ? उत्तर 19               पुरिमताल के प्रधान राजा ऋषभसेन ने संन्यास ग्रहण किया और उसके साथ चैरासी गर्वीले राजाओं ने भी संन्यास लिया।सभी वनचर भी अपने                              वैर भाव को समाप्त कर रहने लगे। ये चैरासी राजा ही ऋषभदेव के गणधर बने। प्रश्न 20                  राजा ऋषभ के कुल कितनी

Sneh Jain

Sneh Jain

समत्वमय प्रज्ञा की प्राप्ति के लिए मोह का त्याग आवश्यक

आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि मोह कषाय का कारण है तथा कषाय ही राग द्वेष का कारण है। । इसलिए मोह के त्याग से ही समत्वमय प्रज्ञा की प्राप्ति संभव है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा - 42.   जेण कसाय हवंति मणि सो जिय मिल्लहि मोहु।       मोह-कसाय-विवज्जियउ पर पावहि सम-बोहु।। अर्थ -  हे जीव! जिससे मन में कषाएँ उत्पन्न होती हैं, उस मोह को तू छोड़। मोह कषाय      से रहित हुआ (तू) राग-द्वेष रहित समत्वमय प्रज्ञा कोे प्राप्त कर।  शब्दार्थ - जेण-जिससे, कसाय-कषाएँ, हवंति-होती हैं, मणि

Sneh Jain

Sneh Jain

२१ अप्रैल, दिन गुरुवार, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की शुभ तिथी को ६ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ पद्मप्रभ भगवान का ज्ञान कल्याणक पर्व है।

?     कल ज्ञान कल्याणक पर्व है      ? जय जिनेन्द्र बंधुओं,             कल २१ अप्रैल, दिन गुरुवार, चैत्र शुक्ल पूर्णिमा की शुभ तिथी को ६ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ पद्मप्रभ भगवान का ज्ञान कल्याणक पर्व है। ?? कल पद्मप्रभ भगवान की पूजन अत्यंत भक्ति करके भगवान का ज्ञान कल्याणक पर्व मनाएँ। ?? जो श्रावक पंच कल्याणक के व्रत करते हैं कल उनका व्रत का दिन है। ?तिथी - चैत्र शुक्ल पूर्णिमा। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??

Abhishek Jain

Abhishek Jain

कषाय भाव ही असंयम का कारण है

आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि कषाय नष्ट होने पर ही मन शान्त होता है और तब ही जीव के संयम पलता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा - 41.  जाँवइ णाणिउ उवसमइ तामइ संजदु होइ।      होइ कसायहँ वसि गयउ जीव असंजदु सोइ।।।41।। अर्थ - जब तक ज्ञानी शांत रहता है, तब तक ही वह संयमी घटित होता है। कषायों के वश में गया हुआ वह ही जीव असंयमी हो जाता है। शब्दार्थ - जाँवइ -जब तक, णाणिउ-ज्ञानी, उवसमइ-शान्त रहता है, तामइ-तब तक, संजदु-संयमी, होइ-होता है, होइ-हो जाता है, कसायहँ -कषायों के, वसि-वश में

Sneh Jain

Sneh Jain

देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 15-17

मित्रों, जिस प्रकार नमि व विनमि के विजयार्ध पर्वत पर जाकर बसने के कारण विद्याधरवंश का उद्भव हुआ उसी प्रकार घर, परिवार, समाज, नगर व देश के उद्भव व विकास के भी कुछ इसी प्रकार के कारण रहे हैं। प्रश्न 15                  ऋषभदेव का प्रथम आहार किसने, कहाँ और कब दिया ? उत्तर 15               हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस ने, हस्तिनापुर में, वैशाखशुक्ल तृतीया को दिया। प्रश्न 16                  राजा श्रेयांस ने ऋषभदेव को आहार में क्या दिया ? उत्तर 16                इक्षु रस प्रश्न

Sneh Jain

Sneh Jain

कल २० अप्रैल, दिन बुधवार को चतुर्दशी पर्व है।

?          कल चतुर्दशी पर्व           ? जय जिनेन्द्र बंधुओ,               कल २० अप्रैल, दिन बुधवार को चतुर्दशी पर्व है। ?? कल जिनमंदिर जाकर देवदर्शन करें। ?? जो श्रावक प्रतिदिन देवदर्शन करते है उनको अष्टमी/चतुर्दशी के दिन भगवान का अभिषेक और पूजन करना चाहिए। ?? इस दिन रात्रि भोजन व् आलू-प्याज आदि जमीकंद का त्याग करना चाहिए। ?? जो श्रावक अष्टमी/चतुर्दशी का व्रत करते है कल उनके व्रत का दिन है। ?? इस दिन राग आदि भावो को कम करके ब्रम्हचर्य के साथ

Abhishek Jain

Abhishek Jain

देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 9-11

प्रश्न       11           नमि और विनमि कौन थे ? उत्तर     11           नमि और विनमि, ऋषभदेव के साले कच्छप और महाकच्छप के पुत्र थे। प्रश्न       12           राजा ऋषभ ने नमि और विनमि को कौन सा क्षेत्र प्रदान किया था ? उत्तर     12           विजयार्ध पर्वत की उत्तर और दक्षिण श्रेणी। प्रश्न       13           नमि व विनमि ने विजयार्ध पर्वत की उत्तर व दक्षिण श्रेणियाँ प्राप्त कर क्या किया ? उत्तर     13           नमि विजयार्ध पर्वत की उत्तर श्रेणी में तथा विनमि विजयार्ध पर्वत

Sneh Jain

Sneh Jain

कल २४ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ महावीर भगवान का जन्म कल्याणक पर्व है।

जय जिनेन्द्र बंधुओं,             कल २४ वे तीर्थंकर देवादिदेव श्री १००८ महावीर भगवान का जन्म कल्याणक पर्व है। ?? कल अपने नजदीकी जिनालय में जाकर धर्म प्रभावना की गतिविधयों में अवश्य ही सम्मलित हों। ?? हम सभी को परस्पर एक दूसरे को वीर प्रभु के जन्म-कल्याणक पर्व की बधाइयाँ और शुभकामनाएं प्रेषित करना चाहिए, क्योंकि वास्तव में यह अवसर ही परस्पर बधाई देने का अवसर है। ?? आचार्यश्री विद्यासागर सेवासंघ ??⁠⁠

Abhishek Jain

Abhishek Jain

देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 9-11

प्रश्न       9              नाभिराज के पुत्र ऋषभ का देवताओं ने अभिषेक कहाँ किया ? उत्तर     9              सुमेरुपर्वत पर प्रश्न       10           राजा ऋषभ के लिए वैराग्य का क्या कारण बना ? उत्तर     10           नृत्य करती नीलांजना का प्राण त्यागना प्रश्न       11           ऋषभदेव ने संन्यास कहाँ लिया ? उत्तर     11           प्रयाग उपवन में

Sneh Jain

Sneh Jain

समता भाव ही रत्नत्रय पालन का आधार है

आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि समता भाव वाले के ही सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चारित्र पलते हैं। समता भाव से रहित के दर्शन, ज्ञान और चरित्र में से एक भी नहीं पलता। देखिये इससे सम्बन्धित दोहा - 40.   दंसणु णाणु चरित्तु तसु जो सम-भाउ करेइ।       इयरहँ एक्कु वि अत्थि णवि जिणवरु एउ भणेइ।। अर्थ - जो शान्त भाव को धारण करता है, उसके ही दर्शन, ज्ञान और चारित्र है।, अन्य (समभाव से रहितों) के (इन तीनों में से) एक भी नहीं है, जिनेन्ददेव इस प्रकार कहते हैं। शब्दार्थ - दंसण-दर्शन, णाणु -ज्ञान, चरि

Sneh Jain

Sneh Jain

रत्नत्रय की नींव शान्त भाव

आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि दर्शन, ज्ञान और चारित्र धारण करना तभी संभव है जब शान्त भाव हो। अत- दर्शन, ज्ञान और चारित्र के पालन से पहले भावों को शान्त रखने का अभ्यास करना चाहिए। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा - 40.   दंसणु णाणु चरित्तु तसु जो सम-भाउ करेइ।       इयरहँ एक्कु वि अत्थि णवि जिणवरु एउ भणेइ।। अर्थ - जो शान्त भाव को धारण करता है, उसके ही दर्शन, ज्ञान और चारित्र है।, अन्य (समभाव से रहितों) के (इन तीनों में से) एक भी नहीं है, जिनेन्ददेव इस प्रकार कहते हैं। शब्दार्थ -

Sneh Jain

Sneh Jain

देखिये भारत की तस्वीर प्रश्न 6 -8

प्रश्न  6      कल्पवृक्षों के नष्ट हो जाने पर प्रजा ने राजा ऋषभ से क्या कहा \ उत्तर 6      प्रजा ने कहा] हे राजन! हम भूख की मार से मरे जा रहे हैं। इस समय              खान पान व जीवन जीने के क्या उपाय है \ प्रश्न  7      प्रजा की करुण पुकार सुनकर राजा ऋषभ ने क्या कहा \ उत्तर 7      राजा ऋषभ ने उन्हें असि] मसि, कृषि, वाणिज्य और दूसरी अन्य              विद्याओं की शिक्षा दी। प्रश्न  8      राजा ऋषभ का विवाह किससे हुआ \ उत्तर 8      नन्दा व सुनन्दा

Sneh Jain

Sneh Jain

ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर - अमृत माँ जिनवाणी से - ३१३

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३१३   ?        "ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर"               एक दिन पूज्य शान्तिसागरजी महराज कहने लगे-" हमारी भक्ति करने वाले को जैसे हम आशीर्वाद देते हैं, वैसे ही हम प्राण लेने वालों को भी आशीर्वाद देते हैं।उनका कल्याण चाहते हैं।"             इन बातों की साक्षात परीक्षा राजाखेड़ा के समय हो गई। ऐसे विकट समय पर आचार्य महराज का तीव्र पुण्य ही संकट से बचा सका, अन्यथा कौन शक्ति थी जो ऐसे योजनाबद्ध षड्यंत से जीवन की रक्षा कर सकती?             कदाच

Abhishek Jain

Abhishek Jain

प्रश्न 3--5

प्रश्न 3       मरुदेवी ने रात मे देखे गये स्वप्न किसको बताये ? उत्तर  महाराज नाभिराज को प्रश्न 4 स्वप्न सुनकर नाभिराज ने मरुदेवी को क्या कहा ? उत्तर - तुम्हारे त्रिभुवन-विभूषण पुत्र होगा प्रश्न 5  मरुदेवी के पुत्र का क्या नाम था ? उत्तर ऋषभ कुमार, आदि कुमार

Sneh Jain

Sneh Jain

कर्मो का संवर व निर्जरा करनेवाले की पात्रता

आचार्य योगिन्दु स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि कर्मों की निर्जरा व संवर करने वाला योग्य पात्र वही है जो आसक्ति को छोड़कर शान्त भाव धारण करता है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा - 39.   कम्मु पुरक्किउ सो खवइ अहिणव पेसु ण देइ।       संगु मुएविणु जो सयलु उवसम-भाउ करेइ।। अर्थ - वह (ही) पूर्व में कियेे कर्म को नष्ट करता है और नये (कर्म) के प्रवेश को (अपने में) स्थान नहीं देता, जो समस्त आसक्ति को छोड़कर शान्त भाव धारण करता है। शब्दार्थ - कम्मु-कर्म को, पुरक्किउ-पूर्व में किये गये, स

Sneh Jain

Sneh Jain

धर्म संकट - अमृत माँ जिनवाणी से - ३१२

जय जिनेन्द्र बंधुओं,            पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन के इस प्रसंग को जानकर आपको बहुत सारी बातें देखने को मिलेगीं। साम्य मूर्ति पूज्य शान्तिसागरजी महराज के सम्मुख बड़ी बड़ी विपत्तियाँ यूँ ही टल जाती थीं, यह उनकी महान आत्मसाधना का ही प्रतिफल था। वर्तमान में पूज्य आचार्य विद्यासागरजी महराज तथा अन्य और भी मुनिराजों के जीवन का अवलोकन करने से अनायास ही ज्ञात हो जायेगा।                दिगम्बर मुनिराज की अद्भुत क्षमा का इससे बड़ा उदाहरण क्या होगा कि नंगी तलवारों से उन पर प्रहार करने

Abhishek Jain

Abhishek Jain

संवर और निर्जरा का समय

आचार्य योगिन्दु कहते हैं कि संवर और निर्जरा करने का अभ्यास आत्मस्वरूप में लीन होकर ही किया जा सकता है। समस्त विकल्प इस आत्म विलीन अवस्था में ही नष्ट होते हैं। ध्यान के समय इसका अभ्यास करने के बाद व्यक्ति धीरे-धीरे प्रत्येक स्थिति में तटस्थ रहने का अभ्यासी हो जाता है और संसारी कार्य करता हुआ भी वह विकल्पों से दूर रहता है। इस प्रकार उसकी संवर व निर्जरा की अवधि धीरे-धीरे बढ़ती रहती है। देखिये इससे सम्बन्धित आगे का दोहा -  38.   अच्छइ जित्तिउ कालु मुणि अप्प-सरूवि णिलीणु।       संवर-णिज्जर

Sneh Jain

Sneh Jain

राजाखेड़ा में उपसर्ग - अमृत माँ जिनवाणी से - ३११

जय जिनेन्द्र बंधुओं,                आज जिस प्रसंग का उल्लेख करने जा रहा हूँ वह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग है। दो दिनों में इसका उल्लेख किया जायेगा। पूज्य शान्तिसागरजी महराज की अपार क्षमा का यह  बहुत बड़ा उदाहरण है। लगभग पिछले छह महीने से इस प्रसंग का उल्लेख करना चाह रहा था आज इस प्रसंग को प्रस्तुत कर पा रहा हूँ।          यह वृत्तांत हम सभी को जानना चाहिए और अपार क्षमायुक्त दिगम्बर मुनिराज के विशाल जीवन से जन-२ को अवगत कराना चाहिए। ?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३११   ?        

Abhishek Jain

Abhishek Jain

समभाव पूर्वक की गयी क्रिया ही संवर का कारण है

आचार्य योगीन्दु कहते हैं कि ज्ञानी (मुनि) के द्वारा समभावपूर्वक की गयी क्रिया ही उसके पुण्य और पाप के संवर का कारण होती है। देखिये इससे सम्बन्धित निम्न दोहा - 37.   बिण्णि वि जेण सहंतु मुणि मणि सम-भाउ करेइ।         पुण्णहँ पावहँ तेण जिय संवर-हेउ हवेइ।। अर्थ -  (फिर) जिससे दोनों (सुख और दुःख) को ही सहता हुआ मुनि मन में सम भाव धारण करता है। इसलिए हे जीव! वह पुण्य और पाप के संवर (कर्म निरोध) का कारण होता है। शब्दार्थ - बिण्णि-दोनों को, वि-ही, जेण-जिससे, सहंतु -सहता हुआ, मुणि-मुन

Sneh Jain

Sneh Jain

ब्लाँग से सम्बन्धित नवीन सूचना

ब्लागस मित्रों, जयजिनेन्द्र। परमात्मप्रकाश पर ब्लाँग लिखने से पूर्व मैंने (पउमचरिउ) जैन रामकथा के प्रमुख पात्रों का चरित्र चित्रण किया था। उसके माध्यम से हम यह जान चुके थे कि जैन रामकथा भारतीय समाज की एक जीती जागती तस्वीर है। उसमें हमने यह देखा कि हम अपने विवेक से या फिर हम दूसरों की प्रेरणा से जो कुछ कर रहे हैं उसी का परिणाम भुगत रहे हैं। पिछले आरम्भिक ब्लाँग में पात्रों के चरित्र चित्रण के बाद मुझे लगा कि क्यों न मैं इस महत्वपूर्ण ग्रंथ को जो भारतीय समाज की जीती जागती तस्वीर है अपने ब्लाग

Sneh Jain

Sneh Jain

×
×
  • Create New...